Thursday, May 22, 2008

हैया रे हैया हैया हो ....

दुनियाभर में समुद्री मार्ग से होने वाली यातायात, व्यापार या सैन्य गतिविधियों के संदर्भ में नेवी शब्द का प्रयोग होता है। जलसेना के लिए आमतौर पर नेवी शब्द ही इस्तेमाल होता है जबकि व्यापारिक अर्थों में सामुद्रिक गतिविधियों के लिए अंग्रेजी में मर्चेंट नेवी जैसा शब्द है। संस्कृत में जहाज या पोत को नौ: कहते हैं जबकि किश्ती या बोट के लिए नौका शब्द है। हिन्दी का नाव शब्द इस नौ: या नौका से बना है। इसी तरह जहाजी परिवहन के लिए हिन्दी मे नौचालन शब्द चलता है जबकि अंग्रेजी में नेवीगेशन । ये दोनों शब्द एक ही मूल से जन्में हैं। इसके लिए संस्कृत और इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार में जो शब्द मिलता है वह नौ: या nau है।

संस्कृत में नौः शब्द में नौका, जहाज, बेडा, नक्षत्रपुंज जैसे अर्थ शामिल है। नौ बना है नुद् धातु से जिसमें धकेलना, ठेलना, हांकना जैसे भाव शामिल हैं। नुद् में प्रोत्साहित करना, उकसाना, आगे बढ़ाना, ढकेलना आदि भाव भी शामिल है। पुराने ज़माने के जो पोत थे वे सभी मानव श्रम से ही चलते थे और यह काम बेहद कठिन था। जहाज़ के तल में मल्लाहों के बैठते थे और वे लगातार डांड या चप्पू चलाते थे। पोत नायक की तरफ से उन्हें उत्साहित करने के लिए लगातार समवेत ध्वनियों का उच्चार होता था। नाविक स्वयं भी -हैया रे, हैया हो... जैसी आवाजें निकालते थे। बाद के दौर में बड़े जहाज़ों को खेने के लिए गुलामों या बंदियों का इस्तेमाल आम हो गया । इन खिवैयों की बड़ी दुर्दशा होती थी और कई तो अत्यधिक श्रम करते हुए दम तोड़ देते थे।

हरहाल नौ: या nau शब्द ने ग्रीक भाषा में naus, nautes होते हुए nautikos का रूप लिया जिसका मतलब होता है मल्लाह या नाविक। बाद में nautical शब्द भी इससे ही बना जो समुद्र संबंधी या समुद्री जैसे अर्थो में काम आने लगा। इसी से बना navis जिससे बाद में navigation जैसे कई अन्य शब्द भी बने। नौ: या nau से न सिर्फ अंग्रेजी में बल्कि ज्यादातर यूरोपीय भाषाओं में नाव या जहाज के अर्थ में ही अनेक शब्द निकले हैं जैसे ग्रीक nau , लैटिन navis , आईरिश nau , आर्मीनियाई nav, और जर्मन में nuosch जैसे शब्द वगैरह। इसी तरह प्राचीन ईरानी यानी अवेस्ता में भी यह navaza के रूप में और फारसी में नाव के रूप में मौजूद है।

7 कमेंट्स:

Arun Arora said...

खेये जाईये जी हैया हो हैया :)

कुश said...

बहुत बढ़िया जानकारी उपलब्ध करवाई आपने.. बधाई

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नाव की, जहाज़ की, मल्लाह की बातें
ये हुईं साहिल की सच्ची चाह की बातें

उड़ान पर पहले हुई अब भँवर में देखो
कर दी सफ़र में समंदर की थाह की बातें

लगता है ज़ानिब मंज़िलों की जो निकल पड़े
क्यूँ कर करें वो आह की या राह की बातें.
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अब तक सुना था कि गुलाम या बंदी
अपने खेवनहार को,नैया पार लगाने के लिए
पुकारते हैं....लेकिन आज अजित जी,
आपने चकित दिया ये बताकर कि
वे स्वयं खेवनहार भी हुआ करते थे !
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बहुत काम की पोस्ट.
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस नौका का नाविक सिद्धहस्त है।

डॉ .अनुराग said...

क्या नाव है ओर क्या नाविक .....

ALOK PURANIK said...

हैया हो भैया, हो हैया

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Excellent - as usual !

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