Monday, March 9, 2009

सूई चुभाने वाली सूचनाएं…

cartoon-notice-board-thumb6453353 सूचित शब्द में बींधा हुआ, सूराख किया हुआ के साथ निर्दिष्ट करना और संकेत का भाव भी शामिल है…
ज का वक्त इन्फॉरमेशन का है अर्थात सूचनाओं के महात्म्य का दौर। हमारे चारों तरफ सूचनाएं दौड़ रही हैं, सूचनाएं बन रही है, सूचनाओं का विस्तार हो रहा है। सूचना ही समाचार है, सूचना ही खबर है। सूचना ही खुशी है, सूचना ही ग़म है। एक सूचना से वारे न्यारे होते हैं और दूसरी सूचना से हाहाकार मच जाता है। दिन की शुरुआत किसी न किसी सूचना से होती है और शाम होते होते सूचनाओं की सूची तैयार हो जाती है। सूचनाओं के सूत्र कहां से कहां तक पहुंचते हैं मगर देखते हैं सूचना शब्द के जन्म-सूत्र हमें  कहां तक पहुंचाते हैं।
संस्कृत की धातु है सूच् जिसमें चुभोना, बींधना जैसे भाव तो हैं ही साथ ही निर्देशित करना, बतलाना, प्रकट करना जैसे अर्थ भी इसमें निहित हैं। दरअसल इसमें सम्प्रेषण का तत्व प्रमुख है इसीलिए संकेत करना, जतलाना, हाव-भाव से व्यक्त करना, अभिनय करना भी इसमें शामिल है। इन तमाम भावों का विस्तार है पता लगाना, भेद खोलना और भांडाफोड़ करना आदि। पत्रकारिता विभिन्न सूचनाओं के जरिये यह काम बखूबी कर रही है।  रास्तों में हमें कई जगह तीर के निशान लगे मिलते हैं जो हमें किसी निर्दिष्ट स्थान आदि का पता बतलाते हैं। इसे सूचक कहते हैं। सूच् धातु से बने सूचक में उपरोक्त तमाम भाव एक साथ नज़र आ रहे हैं। यही नहीं, बींधना, चुभोना जैसे तत्व भी इसमें मौजूद हैं।
EXIT RED WITH ARROW (1) 13X32 copyगौर करें सूचक की आकृति पर। यह प्राय तीर का निशान होता है। तीर आगे से नुकीला होता है। सबसे तेज चुभनेवाली कोई वस्तु अगर है तो वह है सूई। यह सूई इसी सूच् धातु की नोक से निकली है। संस्कृत में सूई को सूचिः कहते हैं। सूचिः > सूचिका > सूईया > सूई यह क्रम रहा है हिन्दी की सूई बनने में। सूचि और सूची दोनो ही रूप संस्कृत-हिन्दी में प्रचलित हैं। बड़ी सूई को सूआ कहते हैं। कोई दुखी करनेवाली या दिल को ठेस पहुंचानेवाली बात के लिए सूई चुभोना मुहावरा खूब बोला जाता है। कई सूचनाएं भी सूई चुभाने वाली साबित होती हैं।  आज जिसे हम लिस्ट के अर्थ में जानते हैं वह सूची दरअसल अधूरा शब्द है। मूल रूप में यह है सूचीपत्रकम्। हिन्दी में इसकी जगह सूचीपत्र शब्द भी चलता है मगर अक्सर सूची से काम चला लिया जाता है। प्राचीनकाल में यह सूचिपत्रकम् मार्कर जैसा पत्र होता था जो ग्रंथों के अलग अलग अध्यायों वाले पृष्ठों को निर्देशित करता था। एक ग्रंथ में ऐसे कई मार्कर होते थे जो सूचिपत्रकम् कहलाते होंगे। स्पष्ट है कि तब तक पृष्टों पर क्रम संख्या लिखने की तरकीब ईजा़द नहीं हुई होगी। बाद में जब पृष्टसंख्या लिखी जाने लगी तो विषयक्रम या अध्याय को इंगित करनेवाले सूचिपत्रकम् को ही ग्रंथ की शुरुआत में सूचिपत्र के रूप में स्थान मिल गया क्योंकि पृष्ठसंख्या के आधार पर अब सीधे ही निर्दिष्ट अध्याय तक पहुंचा जा सकता था। सूचीपत्र के लिए बाद में विषय सूची, अनुक्रमणिका, विषयानुक्रम जैसे शब्द भी चल पड़े।
सूचि एक नाट्यमुद्रा भी है जिसमें अंगचेष्टाओं के संकेतों द्वारा मनोभाव व्यक्त किए जाते हैं। प्राचीनकाल में युद्ध की एक खास व्यूहरचना भी सूचिः कहलाती थी। समझा जा सकता है की तीर की तरह शत्रु को भेदने की इसमें तरकीब लगाई गई होगी। संस्कृत में दर्जी के लिए सूचिक शब्द है क्योंकि वह 0923_03.jpgवस्त्र तैयार करने के लिए कपड़े को सूई से सिलता है। पुराने ज़माने हाथी की सूंड, एक खास किस्म की घास जिसे कुशा भी कहते हैं उसका अग्रभाग सूचः कहलाता है। सूचना शब्द आता है सूचः से बने सूचनम् शब्द से जिसमें संकेत करना, जतलाना, बतलाना, इशारा करना, समाचार देना आदि निहित है। इसमें  पढ़ाना और अवगत कराना भी शामिल है। जिसे हम ज्ञान कहते हैं दरअसल वे सूचनाएं ही तो हैं जो पढ़ने-पढ़ाने की क्रिया से हमें मिलती हैं। ये अलग बात है कि प्रचीनकाल के गुरु-ज्ञानी प्रकृति के संकेतों पर मनन चिन्तन करते थे, उसके इशारों  को समझते थे इसीलिए सूचना भी ज्ञान के दायरे में आती थी। इसीलिए आजकल महत्वपूर्ण सूचना के साथ बारह “भलीभांति” या “अच्छी तरह से” जैसे विशेषण लगाने की जरूरत पड़ती है ताकि वे ज्ञान के दायरे में आ सकें। सूचना के दायरे में अब सिर्फ खबर, रिपोर्ट, समाचार, न्यूज़ आदि बातें शामिल हो गईं हैं। सूचना देने की क्रिया सूचित करना कहलाती है। सूचित शब्द में बींधा हुआ, सूराख किया हुआ, छिद्रित किया हुआ, इंगित किया हुआ, आदि भाव शामिल है। हमे ज्यादातर वाणी के जरिये अवगत होने को ही सूचित करना या सूचित होना मानते हैं। मगर इसके मूलार्थ में हाव-भाव अथवा संकेत से निर्देशित करना ही महत्वपूर्ण है। संस्कृत मे सूअर के लिए एक मजेदार शब्द है सूचरोमन्। साफ है कि सूई जैसे नुकीले रोम अर्थात बालों की वजह से ही उसे यह अद्भुत नाम मिला होगा।

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14 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

सूचरोमन-पहली बार जाना!! किसी को कह दें तो मन भी हल्का हो जाये और वो समझ भी न पाये. हा हा!! आभार.

आप को होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Anonymous said...

ओड़िया में सूई के लिए 'छूचि' शब्द है । चुभने के लिए , सूचित होने के लिए जरूरी ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

तभी तो चुभती सी महसूस होती है कई सूचनाएं

दिनेशराय द्विवेदी said...

कैसे एक अर्थ रखने वाले शब्द से अनेक शब्दों का निर्माण हो जाता है और एक ही शब्द अनेकार्थ देने लगता है। मानव द्वारा भाषा का विकास एक बहुत ही अनोखी प्रक्रिया है। प्रकृति का यह ऐसा वरदान है जो केवल मानव को ही प्राप्त हुआ है।

Alpana Verma said...

'यह प्राय तीर का निशान होता है। तीर आगे से नुकीला होता है। सबसे तेज चुभनेवाली कोई वस्तु अगर है तो वह है सूई।' --इस निगाह से कभी देखा ही नहीं इस निशान को!बहुत दूर तक सोचते हैं आप.आप के साथ यह शब्दों का सफ़र वाकई रोचक है.

अजित जी आप की इस पोस्ट से भी ज्ञानवर्धन हुआ आज !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बढिया सूचना। किसी रोमन को सूचरोमन कभी न कहिए- सोनिया जी तो कतई नहीं:) बुरा न मानो होली है!

mamta said...

सूचित और सूचिक शब्द के अर्थ जाने ।
आपको और आपके परिवार को होली मुबारक हो ।

Himanshu Pandey said...

सूचरोमन शब्द का अर्थ और उस अर्थ की संगति समझ मन प्रसन्न हो गया | धन्यवाद |

Vinay said...

रंगों के त्योहार होली पर आपको एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ

---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें

रंजना said...

एक और सुन्दर रोचक तथा ज्ञानवर्धक विवेचना प्रस्तुत करने हेतु आभार.....

आपको सपरिवार रंगोत्सव की अनंत शुभकामनाएं.

Gyan Dutt Pandey said...

वाह, सूअर सूचरोमन हुआ तो साही क्या हुआ!

विजय गौड़ said...

holy ki suchna nahi doge kya ? chaliye hamari or se badhai swikaren.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

ये ब्लॉग,जिसका नाम शब्दों का सफ़र है,इसे मैं एक अद्भुत ब्लॉग मानता हूँ.....मैंने इसे मेल से सबस्क्राईब किया हुआ है.....बेशक मैं इसपर आज तक कोई टिप्पणी नहीं दे पाया हूँ....उसका कारण महज इतना ही है कि शब्दों की खोज के पीछे उनके गहन अर्थ हैं.....उसे समझ पाना ही अत्यंत कठिन कार्य है....और अपनी मौलिकता के साथ तटस्थ रहते हुए उनका अर्थ पकड़ना और उनका मूल्याकन करना तो जैसे असंभव प्रायः......!! और इस नाते अपनी टिप्पणियों को मैं एकदम बौना समझता हूँ....सुन्दर....बहुत अच्छे....बहुत बढिया आदि भर कहना मेरी फितरत में नहीं है.....सच इस कार्य के आगे हमारा योगदान तो हिंदी जगत में बिलकुल बौना ही तो है.....इस ब्लॉग के मालिक को मेरा सैल्यूट.....इस रस का आस्वादन करते हुए मैं कभी नहीं अघाया......और ना ही कभी अघाऊंगा......भाईजी को बहुत....बहुत....बहुत आभार.....साधुवाद....प्रेम......और सलाम.......!!

RDS said...

म्हारी मालवी बोली में सूई, 'सूजी' केलावे | धन्नभाग कि संस्कृत की 'सूचि' से ई की रिस्तेदारी पेलां की है | असेई, 'लोन' भी संस्कृत का 'लवण' से हीट्यो |

आज भले ई मालवी बोलबा में सरमावां, पण समजी लान्गां तो गरब करांगा |

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