Wednesday, April 22, 2009

चुनाव का परम सत्य…[लोकतंत्र-1]

लो कतंत्र में चुनाव के जरिये ही शासक चुना जाता है। पुराने दौर में राजा-महाराजा होते थे, वही शासक कहलाते थे। अब जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है और बहुमत प्राप्त प्रतिनिधियों का समूह शासन व्यवस्था चलाता है। पसंद की सरकार बनाने की प्रक्रिया के लिए हिन्दी में निर्वाचन या चुनाव शब्द ज्यादा प्रचलित है। अरबी-फारसी-उर्दू में इसे इंतिखाबात कहते है 081015_2000ballot_smith और अंग्रेजी में इलेक्शन election। यह दिलचस्प है कि नेता का रिश्ता नेतृत्व से होता है मगर समाज को आगे ले जाने या राह दिखाने की बजाय नेता सिर्फ बोलता है। भाषण देता है। किसी ज़माने के नेताओं के मुखारविंद से जो वचन झरते थे उन्हें प्रवचन, व्याख्यान की श्रेणी में रखा जा सकता था मगर अब इनके भाषण सिर्फ शब्दों की जुगाली है जिसके प्रमुख तत्व हैं वोट की जुगत और विपक्षी को गाली।
अंग्रेजी का इलेक्शन शब्द हिन्दी में सहज स्वीकार्य हो चुका है। यह बना है लैटिन के ऐलिगर से जिसका मतलब होता है उठाना, चुनना और जिसका रिश्ता है लैटिन के ही लीगर legere से जिसका अर्थ है पढ़ना। भारोपीय धातु लेग् leg, lego से बने ये शब्द जिसमें सामूहिकता, एकत्रीकरण या इकट्ठा होने का भाव है साथ ही इस धातु में चुनाव या चुनने का अर्थ भी निहित है। लैटिन का इलेक्टम भी इसी मूल का है जिसमें यही भाव समाए हैं। इलेक्शन में चुनने का भाव दरअसल अंग्रेजी के लैक्चर से आ रहा है जो खुद लैटिन के लीगर legere से ही बना है। लैक्चर का मतलब आज चाहे व्याख्यान या भाषण देना हो मगर लैटिन में इसका मूलार्थ है पुस्तक में से पठन-पाठन योग्य अंश को चुनना। यहां लैक्चर का मतलब पुस्तक के अध्याय अथवा आख्यान से है। व्याख्याता का काम हर रोज़ छात्रों को एक विशेष अध्याय अथवा आख्यान पढ़ाना ही है। वह उस आख्यान की विवेचना करता है, उसकी व्याख्या करता है। कुल मिला कर जो बात उभर रही है वह यह कि बहुत सारी सामग्री में से कुछ बातें सार रूप में चुनना। पुस्तकों में तथ्य होते हैं, शिक्षक का काम उनका निचोड़ निकाल कर, उनसे ज्ञान की बातें चुन कर छात्रों का मार्गदर्शन करना। इसी दार्शनिक भाव के साथ लैक्चर और इलेक्शन को देखना चाहिए।
लैक्चर से ही बना है लैक्चरर अर्थात व्याख्याता। इस शब्द को भारतीय संस्कृति के आईने में देखें। प्राचीन गुरुकुलों के अधिष्ठाता प्रसिद्ध ऋषि-मुनि थे। प्रायः वे स्वयं अथवा अन्य विद्वान ब्राह्मण जो वेदोपनिषदों की दार्शनिक मीमांसा करते थे, आचार्य कहलाते थे। विद्यार्थी को वेदों के विशिष्ट अंश पढ़ाने के लिए नियमित वृत्ति अर्थात वेतन पर जो शिक्षक होते थे वे उपाध्याय कहलाते थे। कालांतर में शिक्षावृत्ति अर्थात पारिश्रमिक के बदले पढ़ानेवाले ब्राह्मणों का पदनाम ही उनकी पहचान बन गया। पुस्तक या ग्रंथ में समूह का भाव स्पष्ट देखा जा सकता है। कोई भी पुस्तक कई पृष्ठों का समूह होती है। ये तमाम पृष्ठ अलग अलग अध्यायों में निबद्ध होते हैं। लेगो lego का ही एक रूप लेक्टम है जिसमें किसी समूह से चुनने का भाव आ रहा है। विभिन्न उपसर्गों के प्रयोग से इस धातु से बनी कुछ और भी क्रियाएं हैं जो हिन्दी परिवेश में भी बोली जाती हैं जैसे कलेक्ट यानी एकत्रित। उपेक्षा के अर्थ में नेगलेक्ट शब्द है जिसका मूलार्थ freeimages.co.uk workplace imagesकिसी समूह से निकाले जाने का भाव है। चयन के लिए सिलेक्ट शब्द भी हिन्दी में इस्तमाल होता है।  इसी श्रंखला में इलेक्टम से होते हए इलेक्शन शब्द बना है जिसका चुनाव या निर्वाचन अर्थ स्पष्ट है। इलेक्ट और सिलेक्ट में सिर्फ भाव का फर्क है।
रबी, फारसी, उर्दू में चुनाव के लिए इंतिखाब या इंतिखाबात शब्द है। मूल रूप से यह अरबी का है जिसका रूप है इंतिक़ा या अल-इंतिक़ा। फारसी प्रभाव में यह इंतेख़ाब या इंतिखाब हुआ। मोटे तौर पर इंतिक़ा का मतलब होता है बहुतों में से किसी एक को या कुछ को छांट लेना या बीन लेना। अंग्रेजी के इलेक्शन शब्द के पीछे जो दर्शन है वही दर्शन और तर्कप्रणाली अरबी के इंतिक़ा में भी है अर्थात किन्हीं दो व्याख्याओं या विवेचनाओं में से किसी एक परम तार्किक व्याख्या का चयन। अरबी में चुनाव के लिए इज्तिहाद शब्द भी है और चुनाव को इज्तिहाद इंतिकाई भी कहा जाता है। ऐसे चुनाव जो नस्ली आधार पर हों यानी मुस्लिम मुस्लिम को वोट दे और हिन्दू हिन्दू को, उन्हें इंतिखाबे-जुदाग़ानः कहते हैं और संयुक्त निर्वाचन को इंतिखाबे-मख्लूत कहते हैं। गौर करें कि प्राचीन समाज की ज्ञान परम्परा में सत्य की थाह लेने और निष्कर्ष पर पहुंचने के प्रयासों के लिए ही ये शब्द अस्तित्व में आए जिनका व्यापक प्रयोग बाद में समूह या समष्टि में से किसी एक या कुछ इकाइयों को छांटने या बीनने के लिए होने लगा। मूल रूप में चुनाव होना है सच्चे पंथ का। सच्चे ज्ञान का और अंततः परम सत्य का। लोकतंत्र के तहत हम लगातार चुनावों से गुज़रते हैं क्या उसमें छांटने, बीनने, चुनने के बाद वैसा मूल्यवान, प्रदीप्त और शाश्वत तत्व हमारे हाथ लगता है जिसका संकेत इलेक्शन या इंतिखाब जैसे शब्दों में छुपा हैं? चुनाव परम सत्य का होना चाहिए मगर दागी, अपराधी उम्मीदवारों, जोड़-तोड़ वाले राजनीतिक दलों के बीच इस सच का चुनाव कैसे हो?                                  ...जारी.
अगली कड़ी में चुनाव, चयन, निर्वाचन पर चर्चा.

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14 कमेंट्स:

श्यामल सुमन said...

सुमन व्यथित हो देखता गुलशन है बेहाल।
सही लोग को चुन सकें छूटेगा जंजाल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

भाई वडनेकर जी!
इलैक्शन के दौर में निर्वाचन तक शब्दों का सफर आ पहुँच गया है। चुनाव में लैक्चर और लैक्चरार दोनों ही मौजूद हैं। दोनों को आपने बहुत ढंग से धोया है। अब तो इसमें जूतों की कमी रह गयी है। आगामी किसी प्रविष्टी में जूतों की भी महिमा बताने की कृपा करें।

कडुवासच said...

चुनाव परम सत्य का होना चाहिए मगर दागी, अपराधी उम्मीदवारों, जोड़-तोड़ वाले राजनीतिक दलों के बीच इस सच का चुनाव कैसे हो? .... प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत शानदार रही आज की चुनाव महिमा.

रामराम.

दिनेशराय द्विवेदी said...

कल बाहर था, अभी तक थकान नहीं उतरी, अदालत जाना है। वापस लौट कर पढ़ता हूँ। गंभीरता से पढ़ना पड़ेगा। शायद जनतंतर कथा के लिए कुछ अप्रचलित शब्द मिल जाएँ।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

आश्चर्य मिश्रित परितोष
देने वाली विशेष पोस्ट.
==================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

L.Goswami said...

शब्दों का सफ़र भी चुनाव के बहाव में गोते लगा रहा है ..अच्छा लगा यह सब जानकर

Ashish Khandelwal said...

इंतिखाबात की बात अच्छी लगी.. आभार

अफ़लातून said...

इंतिखाबात शब्द तालिबान विरोधी हुआ ? मुझे प्रतीक्षा है भारतीय और गैर पश्चिमी मूल के शब्दों के बारे में पढ़ने और जानने की ।

YOGESH said...

जी इस बार इंतिखाब का तो इन्तेकाल हुआ लगता है , और भारतीय गुरु शिष्य परंपरा और लेक्चरार भी समझ आये
धन्यवाद

Abhishek Ojha said...

"बहुत सारी सामग्री में से कुछ बातें सार रूप में चुनना। पुस्तकों में तथ्य होते हैं, शिक्षक का काम उनका निचोड़ निकाल कर, उनसे ज्ञान की बातें चुन कर छात्रों का मार्गदर्शन करना। इसी दार्शनिक भाव के साथ लैक्चर और इलेक्शन को देखना चाहिए।" लैक्चर तो फिर भी ठीक है पर इलेक्शन का क्या हाल हो गया है ! नाम ही डूबा दिया है लोगों ने...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वेतन पर जो शिक्षक होते थे वे उपाध्याय कहलाते थे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
जैन धर्म के पवित्रतम महा मँत्र "नवकार " मेँ प्रयुक्त शब्द " उवज्ज़ायाणँ " उपाध्याय का अपभ्रम्श ही है ना ?
इँतिखाब तो आ ही गया है सर पर ..
अब या तो जूते नेताओँ के सर पडेँगेँ
या
बेचारी जनता जूतोँ बगैर रहेगी -
- लावण्या

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

इंतिखाबे-जुदाग़ानः ही तो है आजकल हिन्दू और मुसलमान और तो और छोटी छोटी जातियो मे बट कर ही वोट दे रहे है . इंतिखाबे-मख्लूत तो बीते वक्त की बात हो गई है .

के सी said...

मैं राजस्थान पत्रिका में अक्षर यात्रा को पढ़ रहा हूँ साल भर होने को आया है, आपको कोई आठ महीने से. पत्रिका का ये प्रयास अद्भुत है और आपका भी अब स्वतः ये प्रश्न भी उठता है कि कुछ फर्क भी होगा ? हाँ है.... उनकी कक्षा उस प्राध्यापक की सी है जो वेतनमान के लिए पढाता है और शास्त्रीय समझ के पात्र गढ़ना चाहता है और आप जैसे कोई दादा अपने पोतों को प्यार से सिखाने में जुटा हों इस उद्धेश्य से कि वे जीवन को बेहतरी से जी सकें नए शब्दों से अपने को व्यक्त कर सकें.

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