Friday, April 10, 2009

औलिया की सीख, मुल्ला की दहशत [संत-12]

पिछली कड़ी-बिलैती मेम, बिलैती शराब और विलायत
2489-27-2-07_MULLAHOMAR धार्मिक आधार पर लोगों की भावनाएं उभारने और अतिवादी भड़कीली तकरीरें करनेवाले लोग भी अपने नाम के साथ मुल्ला शब्द का प्रयोग करते रहे हैं।

रबी में सूबा या प्रांत के अर्थ में विलायाह शब्द सेमिटिक धातु व-ल-य w-l-y से बना जिसमें स्वायत्त शासन क्षेत्र का भाव था। इसी धातु मूल से जन्मा वली लफ्ज। हिन्दी-उर्दू में वली शब्द मज़हबी शख्सियत के लिए प्रयुक्त होता है। अरब में भी शासनाध्यक्ष को वली कहने की परम्परा रही है और तुर्की में भी। धार्मिक अर्थ में वली शब्द में चमत्कारिक व्यक्तित्व का भाव भी है। पारलौकिक शक्तियों के स्वामी को भी वली कहने का चलन है।
ली का बहुवचन होता है औलिया awliya. इस्लाम के प्रभुत्व के बाद से अरब-तुर्की और फारस में जब मज़हबी सियासत का सिलसिला शुरू हुआ तो शासक ही धर्मप्रमुख होता था। तुर्की का खलीफा ही धार्मिक मामलों का भी प्रमुख था। मगर भारतीय उपमहाद्वीप में औलिया शब्द की पृथक धर्मसत्ता बनी रही। हजरत निजामुद्दीन के साथ औलिया शब्द इसी का प्रतीक है। चूंकि विलायाह में शासन-व्यवस्था का भाव है । हर दौर में धर्म की सत्ता कभी-कभी शासन से भी संयुक्त रही है वर्ना इसकी स्वतंत्र सत्ता तो हमेशा से ही रही है, सो सत्ता व्यवस्था के स्तर पर विलायाह का अर्थ स्पष्ट है। वली शब्द में मददगार, पथ प्रदर्शक और नुमाइंदगी का भाव है। इस तरह सत्ताधीश, राज्यप्रमुख, शासन प्रमुख के तौर पर वली का अभिप्राय भी उजागर है। वली, विलायत, औलिया आदि शब्द अरबी, फारसी, तुर्की, अज़रबैजानी समेत एशिया की अनेक भाषाओं में प्रचलित हैं।
सी सिलसिले का एक और महत्वपूर्ण शब्द है मौला mawla जिसका मतलब होता है संरक्षक या मित्र। सियासत के संदर्भ में मौला शब्द राज प्रमुख के तौर पर भी इस्तेमाल होता रहा। चाहे धार्मिक सत्ता के अंतर्गत देखा जाए या राजनीतिक सत्ता के नजरिये से, मौला शब्द में एक ऐसे व्यक्ति का भाव निहित है जिस पर एक बड़े सम्प्रदाय को दिशा देने की जिम्मेदारी है, जिस पर उसके अनुयायी भरोसा करते हों, जो उनका रहनुमा बने। मौला शब्द का प्रयोग आस्तिक लोग प्रभु, परमकृपालु, ईश्वर, स्वामी, मालिक के अर्थ मे भी करते हैं। सूफियों-फकीरों की वाणियों में मौला शब्द से भाव किसी सम्प्रदाय के प्रमुख से न होकर परमसत्ता से ही है।
सी श्रंखला में आते हैं मौलाना, मौलवी और मुल्ला जैसे शब्द जिनमें धर्मसत्ता, मज़हब के संदर्भ ही उभरते हैं और एक  ऐसा व्यक्तित्व सामने आता है जो लोगों में आदर्श प्रस्तुत करता है। अरबी मैं मौलाना का अर्थ भी प्रमुख, स्वामी या संरक्षक ही होता है मगर भारतीय उपमहाद्वीप में इसका अर्थ धार्मिक नेता या प्रमुख पंथिक के तौर पर लिया जाता है। यह व्यक्ति इस्लाम की शिक्षा का प्रकांड पंडित और व्याख्याकार होता है जिससे लोग पंथ की दीक्षा प्राप्त करते हैं। मौलवी शब्द में भी धर्मशास्त्र के जानकार का भाव है। मौलाना और मौलवी का प्रयोग आमतौर पर बड़े मदरसों, इस्लामी शिक्षा संस्थानों के विद्वानों के लिए किया जाता है। उन इस्लामी विद्वानों के लिए भी मौलाना, मौलवी शब्द का प्रयोग होता है जो उच्च स्तरीय अध्येता हैं। कई संस्थानों में मौलवी पाठ्यक्रम भी होता है जिसे पूरा करने पर यह उपाधि प्रदान की जाती है।

मुल्ला शब्द में भी धार्मिक व्यक्तित्व का भाव है और आम तौर पर इबादतगाह में नमाज़ पढ़वाने का काम इन्ही
के सिपुर्द होता है। इसके अलावा धार्मिक प्रवचन और शिक्षा भी ये लोग देते हैं। मगर बदलते वक्त में इस शब्द की गरिमा को धक्का लगा है। यह हर धर्म में होता आया है। हिन्दुओं में भी नाम के आगे स्वामी और महंत शब्द लगाकर अपना उल्लू सीधा करनेवाले पाखंडियों का पर्दाफाश होता रहा है। मुल्ला शब्द अतिवाद, कट्टरवादी छवि का शिकार हुआ है। धार्मिक आधार पर लोगों की भावनाएं भड़काने और अतिवादी भड़कीली तकरीरें करनेवाले लोग भी अपने नाम के साथ मुल्ला शब्द का प्रयोग करते रहे हैं।
mullah_nasruddin2 ... भारतीय उपमहाद्वीप में मौलाना से आशय धार्मिक नेता या प्रमुख पंथिक के तौर पर लगाया जाता है...
हाल की घटनाएं और उसमें उभर कर आए नाम इस बात का सबूत हैं कि इस सम्बोधन की आड़ में चंद लोग इल्म की नहीं, दहशत की सियासत कायम करना चाहते हैं।

प्रसंगवश "नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है" या "नया मुसलमान पाँच वक्त की नमाज़ पढ़ता है" जैसी कहावत में भी यही मुल्ला नजर आता है। मुस्लिम जाटों की एक बिरादरी को मुल्ला जाट कहते हैं। इन्हें मूला, मूले, मोला जाट जैसे रूपान्तरों से भी जाना जाता है। पंजाब, हरियाणा से होकर ये उत्तर प्रदेश तक पसरे हुए हैं। कुछ लोग आंध्र, महाराष्ट्र और कर्नाटक भी मिलेंगे। दरअसल ये वो जाट योद्धा थे जिन्होंनें मुस्लिम दौर में अन्यान्य कारणों से इस्लाम कुबूल कर लिया था। इस देश में मुसलमानों को उनकी लम्बी दाढ़ी और पाँच वक्त की नमाज़ जैसे मज़हबी तौर तरीकों की वजह से मुल्ला के तौर पर ही पहचाना जाता था। दरअसल यह व्यंग्योक्ति थी। नए मुसलमान बने जाटों को भी को मुल्ला जाट कहा गया।

हालाँकि कुछ लोग इसे "मूल" यानी origin से जोड़ते हैं पर इससे कुछ स्थापित नहीं होता। अगर मुस्लिम जाट मूल जाट हैं तो हिन्दू जाट क्या नकली है? "मूला जाट" की यह व्याख्या करना कि "जो मूल रूप से कभी जाट थे" भी खींचतान कर इस नाम को संस्कृत के करीब लाना है। ध्यान रहे, मुस्लिम समुदाय कभी मूला जाट जैसा पद नहीं बनाएगा। वह इसके लिए अरबी-फ़ारसी पद बनाएगा। मूला जाट में मूलतः व्यंग्य है जो हिन्दुओं की सहज प्रतिक्रिया रही होगी।   
ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

11 कमेंट्स:

Anonymous said...

डॉ.कमलकांत बुधकर
अच्‍छी पोस्‍ट है भाई। मुझे लगने लगा है कि डॉ. प्रभाकर माचवे के बाद तुम हमारे परिवार के दूसरे शब्‍दकौतुकी सिद्ध होते जा रहे हो।

Gyan Dutt Pandey said...

अतिवादी इमेज बताने के चक्कर में मुल्ला के बराबर स्वामी और महन्त को खड़ा करने की सेकुलर मजबूरी से फ्रीडम, ब्लॉगर की असली फ्रीडम है।

http:badnam.blogspot.com said...

भाई वडनेकर जी!
मुल्ला, मौलवी, औलिया, वली सभी का आपने बड़ी खूबी के साथ विश्लेषण प्रस्तुत किया है।
मैं कमलकान्त बुधकर जी के स्वर में स्वर मिला कर उनकी बात का समर्थन करता हूँ।
आपकी खोजपरक लेखनी को प्रणाम करता हूँ।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपको क्या कहा जाए - शब्दों का वली

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिस जिस शब्द ने जनता में इज्जत पाई है उसी का गलत लोगों ने इस्तेमाल किया है। इस्तेमालियों का कुछ हुआ या नहीं पर शब्द बदनाम हो गया। अब कोई अपने को टाइटलर कहलाना पसंद करेगा?

Mansoor ali Hashmi said...

बहुत सुन्दर सफ़र है शब्दों की खोज का.ज्ञानदत्त जी की बात से सहमत हू. मगर आपका शब्दों का सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखना ही तो आपके blogs का आकर्षण है. और विचारो की भिन्नता को स्वीकारना भी तो हमें ब्लोगिंग ने अधिक स्पष्ट रूप से सिखाया है.
आज के टाइटल पर एक शेर याद आ रहा है:
"काश वाइज़* ने मोहब्बत भी सिखाई होती,
और क्या कीजिए अल्लाह से डरने के सिवा.
*वाइज़=उपदेशक
-मंसूर अली हाशमी

Dr. Chandra Kumar Jain said...

मंसूर अली साहब के शेर ने
खुश कर दिया....ऐसी मोहब्बत
बेहद ज़रूरी है इस दौर में.

और हाँ...अजित जी,

मैंने कभी...कहीं पढ़ा था -
हद तपे सो औलिया,बेहद तपे सो पीर,
हद,बेहद दोनों तपे, ताको नाम फकीर.
==============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर जानकारी. आप इतनी जानकारी कैसे जुटाते हैं? कितनी अथक मेहनत करते होंगे आप? इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.

इतनी पुख्ता जानकारी ..बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाएं.

रामराम.

Anil Pusadkar said...

धीरू सिंह से सहमत ,शब्दो के महंत जी को प्रणाम्।

अजित वडनेरकर said...

ज्ञानदा ने बहुत महीन और बढ़िया बात कही है...

Asha Joglekar said...

अल्लाह से डरे ना डरे मुल्ला से जरूर डर लगता है । औलिया तो राहगीर हैं
फकीर हैं ।

नीचे दिया गया बक्सा प्रयोग करें हिन्दी में टाइप करने के लिए

Post a Comment


Blog Widget by LinkWithin