Wednesday, May 20, 2009

सेना से फौजदारी तक…

kurukshetra
संस्कृत का सेना शब्द हिन्दी में इस अर्थ में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय शब्द है। संस्कृत धातु सि का अर्थ होता है बांधना, कसना, जकड़ना, सम्प्रक्त, संगठित आदि। जाहिर है एकत्व, जुड़ाव या संगठन के बिना सेना अर्थहीन है। आप्टे के संस्कृत कोश के मुताबिक संग्राम के देवता कार्तिकेय की पत्नी का नाम सेना था। प्रख्यात संस्कृतिविद् डॉ पांडुरंग वामन काणे की भारतीय धर्मशास्त्र का इतिहास पुस्तक के मुताबिक सेनानी शब्द का उल्लेख ऋग्वेद मे भी आया है। यूं पुराणों में इस अर्थ में बल तथा वाहिनी शब्दों का भी प्रयोग होता रहा है जो आज तक जारी है। प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक छह प्रकार की सेनाएं कही गई हैं-मौल (वंश परम्परागत),भृत्य (वेतन भोगी), श्रेणी (व्यापारियों द्वारा रखी गई वाहिनी), मित्र (मित्रों-सामंतों की सेना), अमित्र (जो बल कभी शत्रुपक्ष के पास था) और आटविक (वन्य जातियों की सेना)।
किसी भी नियमित सेना के आज तीन प्रमुख प्रकार  होते हैं जल, थल और नभ। प्राचीन काल में इसके चार और आठ प्रकार तक बताए गए हैं जिन्हें क्रमशः चतुरंगिणी सेना और अष्टांगिक सेना कहा गया है। चतुरंगिणी में हस्ती, अश्व, रथ और पदातिक होते थे। जाहिर है चतुरंगिणी सेना से अभिप्राय थलसेना से ही था। महाभारत के शांतिपर्व में सेना के आठ अंगों का उल्लेख है जिसमें चतुरंगिणी के चार अंगों के अतिरिक्त बेगार करने वाले सैनिक जिन्हें सिर्फ भोजन मिलता था, विष्टि कहलाते थे। इसके अलावा नाव, चर एवं दैशिक भी थे जो पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाते थे। अक्सर पौराणिक संदर्भों में अक्षौहिणी सेना का जिक्र आता है। भारतीय संस्कृति कोश के मुताबिक अक्षौहिणी सेना में 109350 पैदल सैनिक,65610 घोड़े, 21870 रथ, 21870 हाथी होते थे जिनका योग 218700 होता था। महाभारत में कौरवों के पास ग्यारह और पांडवों के पास सात अक्षौहिणी सेना थी। इस प्रकार कुल अठारह अक्षौहिणी सेनाओं का था महाभारत।
फौजदारी शब्द का इस्तेमाल हिन्दी में रोज़ होता है। यह कोर्ट-कचहरी की शब्दावली का आम शब्द है। अदालतों में कई किस्म के मुकदमें आते हैं जिनमें फौजदारी भी एक किस्म है जिसके तहत मारपीट और हिंसा के मामले होते हैं। फौजदारी शब्द अरबी और फारसी (फौज+दार) के मेल से बना है। फौज अरबी शब्द है जिसमें दार लगा है जो फारसी का प्रचलित प्रत्यय है। अरबी में एक धातु है फाज faj जिसमें तेजी से फैलाव का भाव है जैसे सुगंध, जो अपने
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मूल स्रोत से तत्काल चारों और व्याप्त हो जाती है। फाज में विस्तार, फैलाव, व्याप्त होना, पहुंचना, भेजना जैसे भाव हैं। इससे बना है फौज शब्द जिसका अर्थ है सुगंधित पदार्थ का छिड़काव, किन्ही लोगों के समूह को कहीं भेजना, तैनात करना। इसमें लोगों का दल, सैन्य समूह, टुकड़ी, कम्पनी आदि भी शामिल है। ख़जाने की पहरेदारी और कानूनों की अमलदारी का जिम्मा निभानेवाला अमला भी फौज fauj शब्द में आता है।
फारसी-उर्दू का फौजदार शब्द हिन्दुस्तान में मुग़लों के शासनकाल में ज्यादा प्रचलित हुआ। इसका अर्थ था राज्य का एक बड़ा अफ़सर जिसके जिम्मे कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी है। फौजदार उसे भी कहते थे जिसके जिम्मे किसी परगना की न्याय व्यवस्था हो। उसे ही इस इलाके के अपराधों की सुनवाई का हक था। किसी भी स्थान पर कानून व्यवस्था का उल्लंघन होने, बलवा, झगड़ा या अशांति उत्पन्न होने पर सशस्त्र बल को तत्काल भेजने के अर्थ में फाज से बने फौज शब्द का अर्थविस्तार हुआ और आखिरकार सेना या सशस्त्र बल के रूप में फौज को मान्यता मिल गई। अपराध के अर्थ में फौजदारी शब्द समाज ने अपने आप बना लिया। कानून से जैसे कानूनी शब्द बना यानी विधान संबंधी उसी तरह से फौजदार से फौजदारी का अर्थ हुआ न्याय-व्यवस्था संबंधी। चूंकि फौजदारी मामले हिंसा संबंधी होते थे सो फौजदारी का रिश्ता हिंसक झगड़ों की ऐसी घटनाओं से हो गया जिन पर फौजदार की कचहरी में सुनवाई हो। फौजी शब्द से अभिप्राय सैनिक से है।
फौज के लिए अग्रेजी के मिलिटरी military और आर्मी army जैसे शब्द भी हिन्दी में सुपरिचित हैं। मिलिटरी शब्द की व्युत्पत्ति संदिग्ध है। वैसे यह लैटिन के मिलिटेरिस militaris शब्द से आया है जिसका अर्थ सैनिक होता है। भाषा विज्ञानी इसे समूहवाची शब्द मानते हैं और संस्कृत की मिल् धातु से इसकी सादृश्यता बताते हैं जिसमें समूह, हमला करना, इकट्ठा होना जैसे भाव हैं। मिलन, मिलना, सम्मेलन जैसे शब्द इसी धातु से बने हैं।  आर्मी शब्द मिलिटरी की बजाय ज्यादा प्रचलित है। इसकी रिश्तेदारी भारोपीय भाषा परिवार से है। यह बना है आर्म arm से जिसमें शरीर के हिस्से या अंग का भाव है। आर्म का मतलब भुजा भी होता है। मूलतः यह भारोपीय धातु अर् से बना है जिसमें जुड़ने का भाव है। संस्कृत में इसी मूल का शब्द है ईर्म जिसका मतलब होता है बांह या भुजा (मोनियर विलियम्स)। जाहिर है सेना के रूप में इसने समूहवाची भाव ग्रहण किया क्योंकि सभी अंग शरीर से संगठित होते हैं। अर् से लैटिन में बना आरमेअर armare जिसका मतलब था जुड़ना, इससे बने आर्माता जिसने सशस्त्र बल का भाव ग्रहण किया और फिर अंग्रेजी में इसका आर्मी रूप सामने आया। अधिकांश यूरोपीय भाषाओं में सेना के लिए इसी मूल से बने शब्द हैं और आर्मी, आर्माता या आरमाडा जैसे शब्द हैं।

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11 कमेंट्स:

Asha Joglekar said...

सेना फौज आर्मी सारे शब्दों का उगम बता दिया आपने । फौज का अर्थ सुगंधित पदार्थ होता है, तभी मै सोचती थी कि लडकी का नाम फौजिया रखने का क्या मतलब है वह अब साफ होगया ।

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ said...

सुन्दर। आर्मी के कमीशण्ड आफिसर शब्द के इतिहास पर भी प्रकाश ड़ालें।

Udan Tashtari said...

बहुत ज्ञानवर्धक जानकारी!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सेना से फौजदारी तक का सफर ज्ञानवर्धक रहा।

L.Goswami said...

ज्ञानवर्धक.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

सेना ,फौज ,मिलेट्री ,आर्मी के बारे में ज्ञान वर्धक जानकारी आपसे प्राप्त की . फौजदार तो अब नहीं दीखते लेकिन सड़क पर फौजदारी होना आम है

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत काम की पोस्ट। अक्षौहिणी में दो लाख की संख्या बहुत बड़ी लगती है!
आपका लेफ्ट अलाइण्ड फोटो और टेक्स्ट के बीच मार्जिन कुछ अधिक (>10px) हो तो बढ़िया रहे।

मीनाक्षी said...

पुराने समय की आठ प्रकार की सेनाओं की जानकारी रोचक लेकिन.... कितना रोमांचक होता होगा... आमने सामने दुश्मन और मौत को एक साथ देखना..... ग्लैडिएटर फिल्म याद आ गई !

रंजना said...

सुन्दर ज्ञानवर्धक शब्द यात्रा...
सेना के प्रकार और वर्गीकरण बड़ा ही रोचक लगा...
आभार.

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह said...

सुंदर. बढ़िया ,अच्छा जैसी संज्ञाओं से ऊपर आचुका है आपका ब्लॉग लेखन सो विचार गाम्भीर्य से ही कुछ लिखना हो पाता है ,
रथी, महारथी और अतिरथी के वरीयताक्रम पर बताइए कुछ ,जिज्ञासा है .
मेरा स्नेह और शुभ कामनाएं
सादर ,
भूपेन्द्र

Suresh said...

गुजरात में पुलिस के सबइंस्पेक्टर को फ़ौज़दार कहते थे , जो अब ज्यादा प्रचलित नहीं है और PSI शब्द उपयोग होता है. आप ने सेना के बारे में लिखा पर "सेनापति" कुछ नहीं जताया. फौज में कभी यह रैंक का भी जिक्र है. वैसे लेख बहुत अच्छा लगा धन्यवाद गुजरात में पुलिस के सबइंस्पेक्टर को फ़ौज़दार कहते थे , जो अब ज्यादा प्रचलित नहीं है और PSI शब्द उपयोग होता है. आप ने सेना के बारे में लिखा पर "सेनापति"के बारे में कुछ नहीं जताया. फौज में कभी यह रैंक का भी जिक्र है. वैसे लेख बहुत अच्छा लगा धन्यवाद

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