Saturday, December 26, 2009

चोरी और हमले के शुभ-मुहूर्त

pongal

कि किसी शुभकार्य के लिए निर्दिष्ट समय को मुहुर्त कहते हैं। ज्योतिष एवं पंचांग में विश्वास करने का संस्कार केवल भारत भूमि पर निवास करनेवालों में ही था, ऐसा नहीं है। प्राचीन यूनान, रोम से लेकर अरब क्षेत्र के निवासियों में भी यह परम्परा थी और ज्योतिषी-नजूमी प्रभावशाली लोगों के लिए सूर्य-चंद्र एवं ग्रहों की स्थिति के आधार पर कालगणना करते थे और उन्हें शुभाशुभ योग के बारे में मार्गदर्शन देते थे। महामहोपाध्याय डॉ पांडुरंग वामन काणे धर्मशास्त्र का इतिहास में आथर्वण ज्योतिष (आथर्वण यानी अथर्ववेद के ज्ञाता ज्योतिषी) के हवाले से लिखते हैं कि अगर व्यक्ति सफलता चाहता है तो उसे तिथि, नक्षत्र, करण एवं मुहूर्त पर विचार करके कर्म या कृत्य करना चाहिए। तिथि का पता न चले तो शेष तीनों पर निर्भर रहना चाहिए। अगर शुरु के तीनों उपलब्ध न हो तो सिर्फ मुहुर्त का आश्रय लेना चाहिए और अगर मुहूर्त भी उपलब्ध न हो तब ब्राह्मण के इस वचन, कि-आज शुभ दिन है, से उसे कर्म करना चाहिए।
मुहूर्त शब्द का उल्लेख ऋग्वेद में दो बार आया है जिसके मुताबिक इसका अर्थ “अल्पकाल या थोड़े क्षण” से है। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद में दिन-रात के तीस भागों की ओर भी गूढ़ संकेत है। शतपथ ब्राह्मण में मुहूर्त दिन का पंद्रहवां भाग अर्थात दो घड़ी (48 मिनट) है। इससे यह भी स्पष्ट है कि प्राचीन भारतीय काल गणना दिन-रात की अवधि 30 घड़ियों की थी। इनमें सुबह, दोपहर, शाम की शुभाशुभ घडियों (द्वि घटिका) का उल्लेख है। ब्राह्ममुहूर्त एक प्रसिद्ध मुहूर्त है। मुहूर्त के अल्पकाल वाले अर्थ के बाद कालान्तर में इसका एक अन्य अर्थ भी हो गया वह था दो घड़ी। समझा जा सकता है कि तब तक मुहूर्त लगभग समय की एक स्थूल इकाई ही था।संस्कृत में मुहूर्त शब्द से जुड़ा एक शब्द मुहुस्  है जिसमें कुछ क्षण के लिए, थोड़ी देर के लिए  अथवा कुछ क्षण जैसे भाव हैं। वैदिक संज्ञाओं के प्रसिद्ध व्युत्पत्तिकार यास्क ( ईसा पूर्व 10 वीं सदी ) ने निरुक्त में इसकी व्युत्पत्ति मुह्+ऋतु से बताई है जिसका अर्थ है वह काल जो शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। ऋतु को हम रुत या मौसम के संदर्भ में इस्तेमाल करने के आदि हैं मगर इसका सूक्ष्म या गूढ़ार्थ काल ही है। संस्कृत में मूलतः किसी राह जाना और कुछ पाना का भाव है। इसमें परिभ्रमण, चक्रण, परिवर्तन, वृत्ताकार गति जैसे भाव हैं जिनके संदर्भ में calendarएक निश्चित अवधि के बाद ऋतुओं के फिर लौटने का अर्थ स्पष्ट होता है। मुह् धातु का अर्थ होता है मुर्झाना, मुर्छित होना, नष्ट होना, जड़ होना आदि। मूढ़ या मूर्ख की मूल धातु भी मुह् ही है। मूर्ख वही व्यक्ति होता है जिसकी चेतना मुर्झा चुकी हो, जो जड़ हो चुका है। बुद्ध की जड़ मुद्रा से बुद्धू शब्द की व्युत्पत्ति के संदर्भ में इसे समझना ज्यादा आसान है।
वैदिक और वेदोत्तर ग्रंथों में पंद्रह और तीस मुहूर्तों के नाम देवताओं के नामों पर रखे गए थे। ब्राह्ममुहूर्त से यह स्पष्ट है। वैदिक काल में मुहूर्त के दोनों प्रचलित अर्थों 1) अल्पकाल या थोड़ी देर और 2) दो घटिकाओं की अवधि प्रचलित थे। बाद में जब दिन की कुछ घटिकाओं का काल शुभ घोषित हुआ तो मुहूर्त का एक तीसरा अर्थ भी प्रकट हुआ, “वह काल जो किसी शुभ कृत्य के लिए अनुकूल हो” (कालः शुभक्रियायोग्यो मुहूर्त इति कथ्यते) आज दरअसल इसी अर्थ में मुहूर्त का प्रयोग होता है और परवर्ती पुराणेतर ज्योतिष धर्मग्रंथों में इसी अर्थ में मुहूर्त का उल्लेख हुआ है। मध्यकालीन संस्कृत साहित्य में मुहूर्त-संबंधी महत्वपूर्ण ग्रंथ जैसे-हेमाद्रि, कालमाधव, कालतत्वविवेचन, निर्णयसिन्धु रचे गए। जैसे जैसे समाज का विकास होता गया, साथ ही साथ ज्योतिष पर भी उसकी आस्था बढ़ती गई।अलग-अलग अवसरों के लिए विद्वानों नें मुहूर्तों की गणनाएं की जैसे विभिन्न संस्कारों, गृह-निर्माण एवं गृह-प्रवेश, विवाह, यात्रा या धावा बोलने का काल, कृषिकर्म और व्यापार वाणिज्य के क्षेत्र में मुहूर्तों का विस्तार होता गया और बात चौर्य-कर्म के मुहूर्त जानने तक जा पहुंची थी। ज्योतिष ज्ञान कहता है कि मृगशीर्ष, भरणी, धनिष्ठा, चित्रा तथा अनुराधा नक्षत्रों में शनिवार या मंगलवार को अगर चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी की तिथियों में अगर चोरी की जाती है तो उसमें सफलता मिलती है। मनुष्य अपनी कर्मठता को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता इसलिए शुभ मुहूर्त में के बाद ही कार्यारम्भ करने में उसका मन रमता है। ये अलग बात है कि सच्चे कर्मयोगी, विचार के जन्म को ही शुभ मुहूर्त मानते हुए बिना आनुष्ठानिक शुरुआत के कर्म-पथ पर बढ़ते रहे और समाज को दिशा देते रहे। यूं देखें तो किसी भी कार्य के शुभारम्भ से पहले उससे जुड़े सभी पक्षों का सम्यक अध्ययन करने के बाद जिस क्षण उसे शुरु किया जाए, वह समय अपने आप में शुभ-मुहूर्त ही होता है।

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11 कमेंट्स:

Udan Tashtari said...

किसी भी कार्य के शुभारम्भ से पहले उससे जुड़े सभी पक्षों का सम्यक अध्ययन करने के बाद जिस क्षण उसे शुरु किया जाए, वह समय अपने आप में शुभ-मुहूर्त ही होता है।

-सत्य वचन!!

Smart Indian said...

मुहूर्त की भली कही. भक्तों का यकीन तो सदा सत्यमेव जयते और प्रभु के चरणों में ही रहता है:
तदैव लग्नं सुदिनं तदैव ताराबलम चन्द्रबलम तदैव
विद्याबलं दैवबलं तदैव लक्ष्मी पतिम तेंध्रियुगम्स्मरामी

आपका ब्लॉग IE में खुलता नहीं है, बल्कि उसे क्रैश कर देता है (ज़रूर कोई विजेट आदि गड़बड़ कर रहा है.) और इस कारण बहुत बार हम और अन्य लोग इस ज्ञान से वंचित रह जाते हैं. कृपया देखिये क्या समस्या है.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अच्छा है।

Himanshu Pandey said...

मुहूर्त के संबंध में गम्भीर आलेख । काफी कुछ उल्लिखित हो गया है इस आलेख में । आभार ।

कडुवासच said...

... शुभ मुहुर्त ...वाह-वाह ...क्या शुभ - क्या अशुभ !!! ...कोई कार्य प्रारम्भ से ही अशुभ था या अशुभ होने पर अशुभ हो गया इसका निर्धारण कैसे होगा !!!!... या फ़िर कार्य सफ़ल हो गया तो शुभ और असफ़ल हो गया तो अशुभ !!!!

Baljit Basi said...

गुरु नानक देव ने जपु जी में फरमाया है :

कवणु सु वेला वखतु कवणु कवण थिति कवणु वारु
कवणि सि रुती माहु कवणु जितु होआ आकारु
वेल न पाईआ पंडती जि होवै लेखु पुराणु
वखतु न पाइओ कादीआ जि लिखनि लेखु कुराणु
थिति वारु ना जोगी जाणै रुति माहु ना कोई
जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणै सोई

मतलब है कि परमात्मा ने सृष्टि की कभ सृजना की उस के बारे कोई नहीं जानता. काव्य का आनंद लो , मानने की बात अलग है.

अजित जी दा जवाब नहीं . शुभतम महूर्त में जन्म लिया उन्हों ने .

Khushdeep Sehgal said...

अजित जी,
इंटरनेट और यू-ट्यूब से चोरी करने का भी कोई मुहू्र्त होता है क्या...सोचता हूं अगर इंटरनेट ने मीडिया का काम कितना आसान कर दिया है...कोई संदर्भ चाहिए झट से गए गूगल बाबा की शरण में....इंटरनेट ठप हो जाता है तो डेस्क के पत्रकारों के चेहरे की बेबसी देखने वाली बनती है...

जय हिंद...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह ......!
आज तो आपने शुभ मुहूर्त निकाल कर ही पोस्ट प्रकाशित की है!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

शुभ मुहूर्त में होने वाले काम भी असफल हो जाते है . ना जाने क्यों . दो घडी सांस ले लू फिर सोचूंगा

निर्मला कपिला said...

वह बहुत खूब । बहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद्

RAJ SINH said...

अजीत भाई ,
हमेशा की तरह शब्दों की अच्छी ' खबर ' ली गयी है .
........और पुराने चोर बेवकूफ थे मुहूर्त देखते थे .आज के राष्ट्रीय और महाराष्ट्रीय " चोर " जब चाहे चोरी में लगे रहते हैं . साल का हर पल छिन उनके लिए " शुभ मुहूर्त " साबित होता रहा है .
आप को पढ़ कर तो आजकल थोडा बहुत मैं भी शब्द ज्ञानी बनता जा रहा हूँ .
अनेकों धन्यवाद !

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