Thursday, January 20, 2011

सम्पादक, एडिटर और मुदीरे-आला

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हि न्दी में सम्पादक शब्द से सभी परिचित हैं। किसी अख़बार, पत्र-पत्रिका की सामग्री का चुनाव करनेवाले व्यक्ति को सम्पादक कहते हैं। और ज्यादा स्पष्ट करें तो वह व्यक्ति जो किसी पत्र-पत्रिका, पुस्तक या ग्रंथ की सामग्री का चयन करे, विषयवार उसे व्यवस्थित रूप दे, उसकी भाषा से लेकर सज्जा तक हर काम का संयोजन-नियोजन जिसके जिम्मे हो और इसके बाद उसे वह प्रकाशन योग्य बनाए, वही सम्पादक है। सम्पादक शब्द बना है संस्कृत पद में सम् उपसर्ग लगने से के [ सम् + पद् + णिच् + ण्वुल ] । बृहत हिन्दी शब्दकोश में सम्पादक का जो अर्थ दिया है उसके मुताबिक किसी भी काम को पूरा करनेवाला, पूर्ण करनेवाला, तैयार करनेवाला सम्पादक कहलाता है। किसी समाचार पत्र-पत्रिका, ग्रंथ की सामग्री को प्रकाशन योग्य बनानेवाला या उसका सम्पादन करनेवाला सम्पादक होता है। संस्कृत में पद का अर्थ है पंक्ति, लकीर, कतार, कविता की पंक्ति, हासिल करना, पाना, पास जाना, पहुंचना, पालन करना आदि। संस्कृत का सम् उपसर्ग बहुत व्यापक अर्थवत्ता रखता है पर मोटे तौर पर इसमें समान करना, साथ-साथ, एक जैसा, बराबर आदि। सम् में पद् मिलकर बनता है सम्पादक। सम्पादन वह क्रिया है जो सम्पादक करता है। मूलतः लिखित सामग्री को ठीक करने के काम के संदर्भ में देखें तो सम्पादक का अर्थ स्पष्ट होता है। पद अर्थात किसी लिखित पंक्ति को वर्तनी, व्याकरण की दृष्टि से ठीक करना अर्थात सभी पदों को सम् यानी ठीक करना। सम् पदन् की यह क्रिया ही सम्पादन कहलाती है।
खबारों-पत्रिकाओं में सम्पादक का पद महत्वपूर्ण होता है। सम्पादक वह है जो मुद्रित सामग्री के प्रकाशन से जुड़े सभी पक्षों की गुणवत्ता के लिए उत्तरदायी होता है। सम्पादक शब्द बना है सम्पादः से जिसका रिश्ता भी इसी पद से है। सम + पदन् के योग से बने इस शब्द में किसी कार्य के उचित ढंग से करने अर्थात निष्पादन का भाव है जो इसी मूल का शब्द है। सम्पादन अर्थात एडिटिंग के संदर्भ मे देखें तो लिखी हुई इबारतों को सुधारना ही सम्पादन है अर्थात पदों को समान करना, उन्हें सही करना। संस्कृत में सम्पादनम् का अर्थ है सही करना, साफ करना, तैयार करना, पूरा करना आदि। एडिटिंग के संदर्भ में मूल भाव पदों अर्थात लिखित सामग्री में सुधार करना ही है। बोल-व्यवहार में सम्पादन शब्द की अर्थवत्ता ज्यादा व्यापक है। “वह अपने काम का सम्पादन ठीक से नहीं कर पाया” जैसा वाक्य किसी सम्पादक के लिए नहीं कहा गया है बल्कि जिम्मेदारी ठीक से न निभा पाने के सन्दर्भ में कहा गया बेहद सामान्य वाक्य है। आप्टे कोश के मुताबिक सम्पादन का अर्थ है निष्पादन, कार्यान्वयन, पूरा करना, उपार्जन करना, प्राप्त करना, स्वच्छ करना, साफ़ करना आदि। इन सभी अर्थों में पद को सम करने की बात स्पष्ट हो रही है। सम्पादक के साथ उप, सहायक, कार्यकारी, प्रबंध या प्रधान जैसे शब्दों के जुड़ने के साथ सम्पादक शब्द का रुतबा भी बढ़ता जाता है।
अंग्रेजी में सम्पादक को एडिटर कहते हैं और यह शब्द भी हिन्दी में खूब प्रचलित है इसका अर्थ है वह व्यक्ति जो लिखित सामग्री को प्रकाशन योग्य बनाए। एडिटर भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी के अनुसार यह लैटिन मुहावरे e ditus से बना है जिसका मतलब है आगे बढ़ाना। मूलतः इसमें भाव प्रस्तुत करने या समुचित रूप से तैयार करने से है। यहाँ डिटस का रिश्ता तिथि के लिए अंग्रेजी शब्द डेट date से है। डिटस बना है डेटस datus से जिसका अर्थ है प्रदत्त, दिया हुआ आदि। इसकी मूल भारोपीय धातु है do- जिसकी समानार्थक संस्कृत धातु दा है जिसमे देने का भाव है। भारत में उर्दू पत्र-पत्रिकाएं भी निकलती हैं। उर्दू में सम्पादक को मुदीर कहते हैं। यह सेमिटिक भाषा परिवार का शब्द है। फ़ारसी में इसका रूप मोदीर, तुर्की में मुदुर और अज़रबैजानी में मूदिर हो जाता है। यह बना है सेमिटिक धातु dwr से जिसमें भ्रमण, घुमाना, चक्कर देना, इर्द-गिर्द जैसे अर्थ निहित हैं। इसकी अर्थवत्ता में किसी तथ्य पर सम्यक विचार करना, चिन्तन-मनन करना जैसे भाव शामिल हैं। इस तरह मुदीर का अर्थ हुआ संचालक, निर्देशक, नियंत्रक आदि। सम्पादक जैसी व्यवस्था बीती कुछ सदियों की देन है जिसके लिए यह शब्द चुना गया तब से मुदीर शब्द सम्पादक के लिए रूढ़ हो गया है। प्रधान सम्पादक को मुदीरे-आला कहा जाता है। महिला सम्पादक या सम्पादिका के लिए मुदीरः या मुदीरा शब्द प्रचलित है।

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2 कमेंट्स:

प्रवीण पाण्डेय said...

सबको ठीक से व्यवस्थित रखना, बस यही तो दिन भर हम करते रहते हैं।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सर ! आपकी यह जानकारी देती हुवी सुन्दर पोस्ट / लेख मैंने चर्चामंच पर आज रखा है .. और आपके ब्लॉग की जानकारी भी .. आप अन्यथा नहीं लेंगे | सादर शुक्रिया

http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/blog-post_21.html

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