Monday, December 31, 2012

चक्र, चक्कर, चरखा

हिन्दी के तीन चकले-1circles
हिन्दी में तीन चकले बहुत प्रसिद्ध हैं । पहला ‘चकला’ है रसोई का जिसका साथ निभाता है बेलन । दूसरा ‘चकला’ स्थानवाची अर्थवत्ता रखता है जैसे चकला-खानपुर या नरवर-चकला । तीसरा चकला  है रूपजीवाओं का ठिकाना जो कला-व्यापार से ज्यादा देह-व्यापार के लिए कुख्यात है । तीनों ही तरह के चकलों का आज भी अस्तित्व है बल्कि ये भाषा-प्रयोग में भी बने हुए हैं । ये अलग बात है कि रसोई वाले चकले को छोड़ कर दोनो चकलों का सम्बन्ध भारत-ईरानी भाषा परिवार की फ़ारसी भाषा से है । गौरतलब है कि चक्कर, व्हील, साइकल, सर्कल जैसे शब्द इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार से सम्बद्ध हैं और एक ही गर्भनाल से जुड़े हैं और इनका रिश्ता वैदिक / संस्कृत शब्दावली के ‘चक्र’ से है । चकले के भीतर दाखिल होने से पहले जायज़ा लेते हैं चक्र का । भाषाविदों का मानना है कि वैदिक चक्र का पूर्वरूप चर्क रहा होगा और इसी वजह से वे चक्र की ‘चर्’ क्रिया में निहित निरन्तर गति का भाव देखते है । निरन्तर गति सीधी दिशा में हमेशा मुमकिन नहीं है किन्तु वलयाकार परिभ्रमण करते हुए इस निरन्तरता को सौफ़ीसद सम्भव बनाया जा सकता है । इसी लिए ‘चक्र’ के पूर्वरूप ‘चर्क’ से निरन्तर ‘चर्’ ( चल् = चलना ) वाली क्रिया सिद्ध होती है । अक्ष पर चारों दिशाओं में घूमना ही ‘चक्र’ है ।

इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार की भाषाओं में रोमन ध्वनियां ‘c’ और ‘k’ के उच्चारण में बहुत समानता है और अक्सर ये एक दूसरे में बदलती भी हैं । इसी तरह अंग्रेजी का कैमरा camara, चैम्बर और हिन्दी का कमरा  एक ही मूल के हैं मगर मूल c (स) वर्ण की ध्वनि यहाँ अलग-अलग है । यह जानना ज़रूरी है कि ग्रीक और आर्यभाषाओं के ‘च’ और ‘क’ वर्णों से बनने वाले शब्दों में आपसी रूपान्तर होने की प्रवृत्ति है । भारोपीय धातु kand ( कैंड / कंद ) का एक रूप cand ( चैंड / चंद् ) भी होता है। इससे बने चंद्रः का मतलब भी श्वेत, उज्जवल, कांति, प्रकाशमान आदि है । डॉ. रामविलास शर्मा ‘भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिन्दी’ में लिखते हैं - “संस्कृत चक्र का ग्रीक प्रतिरूप कुक्लॉस है । चक्र का पूर्वरूप चर्क होगा; वर्णविपर्यय से र् का स्थानान्तरण हुआ । कुक्लॉस का पूर्वरूप कुल्कॉस होगा; यहाँ भी वर्णविपर्यय से ल् का स्थानान्तरण हुआ । कुल्, कुर् क्रिया का पूर्वरूप घुर् होगा । कर्, सर्, चर् परस्पर समबद्ध हैं । सर्, चर् वाले रूप द्रविड़ भाषाओं में उल्लेखनीय हैं ।” एमिनो-बरो के द्रविड़ व्युत्पत्ति कोश के चुनींदा शब्दों के ज़रिये वे इसे साबित भी करते हैं मसलन । तेलुगु सारि (आवर्तन), सुरगालि (बवंडर), कन्नड़ सुळि, (घूमना), सुरुळि (छल्ला), तुलु सुळि (भंवर), सुत्तु (चक्कर खाना), तमिल चुर्रू ( चक्कर खाना), चूरई (बवंडर) आदि । किक्लोस से लैटिन के प्राचीन रूप में साइक्लस शब्द बना जिसका अंग्रेजी रूप साइकल cycle है । चक्र और साइकल एक ही है ।

वैदिक चक्र और बरास्ता अवेस्ता, पहलवी होते हुए फ़ारसी के चर्ख रूप में वर्णविपर्यय स्पष्ट नज़र आ रहा है । जिस तरह वैदिक ‘शुक्र’ से फ़ारसी में ‘सुर्ख़’ बनता है, ‘चक्रवाक’ का ‘सुरख़ाब’ होता है उसी तरह ‘चक्र’ से ‘चर्ख़’ बनता है । हिन्दी की पश्चिमी बोलियों में यही रूप सुरक्षित रहा और इससे ही गोल, वलयाकार यन्त्र के लिए ‘चर्ख’ शब्द बना जिसका एक रूप ‘चरख’ भी है । मानक बृहद हिन्दी कोश के मुताबिक फ़ारसी के ‘चर्ख़’ का अर्थ घूमने वाला गोल चक्कर, खराद, गोफन, तोपगाड़ी, रथ, करघा आदि होता है । करघे के लिए चरखा शब्द के मूल में चर्ख़ / चरख ही है । ध्यान रहे कलफ़ किए हुए विशाल आकार के सूती कपड़ों को चरख किया जाता है । दरअसल यह इसी चर्ख़ से निकला है । एक विशाल चरखी पर कपड़े को लपेटने की क्रिया ही चरख़ कहलाती है । ऐसा करने से कपड़े की सिलवटें दूर हो जाती हैं । पहिये या स्टीयरिंग को चक्का कहते हैं । चरखा, चरखी, चकरी, चक्की जैसे नाम पहिए, झूले, यन्त्र, उपकरण के होते हैं । सिर घूमने को चकराना कहते हैं । यह चक्कर से बना है । जो आपको चक्कर में डाल दे ऐसे व्यक्ति को ‘चक्रम’ की संज्ञा दी जाती है । चक्कर, चकराना, चकरम (चक्रम) जैसे शब्दों के मूल में चक्र ही है ।
हले जानते हैं ‘चक’ को जो फ़ारसी से हिन्दी में दाखिल हुआ । गाँव-देहात की जानकारी रखने वाले लोग ‘चक’ से खूब परिचित हैं । चक्र का ही रूपान्तर है चक जिसका अर्थ है ज़मीन का एक विशाल टुकड़ा । बड़ी आबादी से बसा हुआ क्षेत्र । कृषि भूमि या किसी भी किस्म की गोचर ज़मीन पर बसी आबादी । उपत्यका भूमि अथवा घाटी, दर्रा या तराई का क्षेत्र । व्यवस्थित बसाहट वाला गाँव । सतपुड़ा और मैकल पर्वत की तराई के एक क्षेत्र को बैगाचक कहते हैं । यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ बैगा जाति की दर्जनों बस्तियाँ हैं । किन्हीं गाँवों के नामों के साथ भी यह शब्द लगा रहता है जैसे चक-चौबेवाला या चक-माजरा । यहाँ चक का अर्थ है चक्र अर्थात घेरा, वर्तुल, वृत्त आदि । पुराने ज़मानें से ही दुनियाभर में उपनिवेशन होता आया है । कृषिभूमि और जलस्रोतों के इर्दगिर्द आबादियाँ बसती रहीं । घिरी हुई जगह पर लोग बसते रहे । प्रायः शक्तिशाली व्यक्ति या शासक अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए निर्जन स्थानों पर लोगों को बसाया करते थे । खेतों के निकट अनुपजाऊ भूमि पैमाइश कर लोगों को बाँट दी जाती थी । इसी तरह प्रत्येक परिवार को खेत भी दिए जाते थे । भूमि के चौकोर टुकड़ों की पैमाइश होती थी, मगर चारों ओर से घिरे होने की वजह से उन्हें चक्र अर्थात ‘चक’ कहा जाने लगा था । सिलसिलेवार राज्यसत्ता के विकास के बाद भूक्षेत्र के रूप में चक शब्द का प्रयोग रूढ़ हुआ होगा । राजस्व शब्दावली के अंतर्गत हिन्दी में चक की आमद फ़ारसी से मानी जाती है । यूँ भी कह सकते हैं कि भारत-ईरानी परिवार की पश्चिमोत्तर बोलियों में प्राकृत चक्क के कई रूप प्रचलित होंगे जिनका सम्बन्ध वैदिक ‘चक्र’ से था । ऐसे कई चक होते थे जो बस्तियों में तब्दील हो जाते थे । किसी एक के स्वामित्व वाला खेतों का समूह भी चक कहलाता है जो अलग अलग मेड़ों के बावजूद मूलतः भूमि का एक ही खण्ड हो। इसी कड़ी का शब्द है चकबंदी जिसका अभिप्राय भूमि का सीमांकन या हदबंदी है । छोटी जोतों वाले खेतों को मिलाना या बड़े खेत में तब्दील करना ही चकबंदी है।
चकले की चर्चा । चक्कर ( चक्र ) और साइकल एक ही है । इसी तरह चक्र और सर्कल भी एक ही है । cycle में ‘c’ के लिए ‘स’ के स्थान पर ‘च’ का उच्चारण करें तो हमें अंदाज़ होता है इन दोनों में ( चक्कर ) ज्यादा अंतर नहीं है । साइकल भी एक वृत्त है और चक्कर भी मूलतः एक वृत्त ही है । डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार- संस्कृत में चक्र का एक ग्रीक प्रतिरूप और है- किरकॉस । ग्रीक भाषा में ही इसका एक वैकल्पिक रूप क्रिकॉस है । ‘कर’, ‘कल’ दोनो क्रियारूप ग्रीक में हैं । कॅर, कॉर, ये दोनो रूप उस भाषा में हैं । किरकॉस से इस बात की पुष्टि होती है कि कुक्लॉस का पूर्वरूप कुल्कॉस था । इसी प्रकार फ़ारसी चर्ख से इस बात की पुष्टि होती है कि संस्कृत चक्र का पूर्वरूप चर्क था । लैटिन किर्कुस (चक्र), किर्रुस (छल्लेदार बाल) का आधार कॅर है ।” जो भी हो, चक्र के पूर्वरूप चर्क की बात करें या र के ल रूपान्तर पर सोचें, चकला शब्द का रिश्ता चक्र से ही जुड़ता है । चक्र को अगर खोला जाए तो च-क-र हाथ लगता है । चकला में भी च-क-ल ध्वनियाँ हैं । 'र’ का रूपान्तर ‘ल’ में होता है और इस तरह सीधे सीधे चक्र से चकला ( बरास्ता चक्ल ) हासिल हो रहा है । रॉल्फ़ लिली टर्नर की कम्पैरिटिव डिक्शनरी ऑफ़ इंडो-आर्यन लैंग्वेजेज़ में चकला की व्युत्पत्ति संस्कृत के चक्रल से मानी है । भारत का ‘चकराला’ और पाकिस्तान के ‘चकलाला’ नाम के स्थानों के मूल में यही ‘चक्रल’ है । अन्य कोशों में भी चकला का रिश्ता चक्रल से जोड़ा गया है । यह चक्रल वही है जो अंग्रेजी में सर्कल है । अगर चक्र का पूर्व रूप चर्क माने तो अंगरेज़ी सर्कल के आधार पर इंडो-ईरानी परिवार में चर्कल जैसे रूप की कल्पना भी की जा सकती है अर्थात संस्कृत के चक्रल का पूर्ववैदिक बोलियों में चर्कल ( सर्कल सदृश ) जैसा रूप रहा होगा । सर्कल की कड़ी में सर्कस भी है । –जारी
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3 कमेंट्स:

अशोक सलूजा said...

आप की पोस्ट से सदा बहुत कुछ सीखने को मिलता है ....
यूँ ही सीखते रहिये !
नव-वर्ष आपको परिवार सहित शुभ हो !

दिनेशराय द्विवेदी said...

बड़ी चक्कर दार पोस्ट है जी। बहुत काम की बातें समझ में आईं। चक्र बहुरूपी है। चर्क, चरख, चरखा, चक्र, चक्कर और चकला। चक्र के आसपास बहुत कुछ घूमता है। मुझे तो जनप्रिय लेखक का जासूस चक्रम भी स्मरण हुआ।

प्रवीण पाण्डेय said...

एक केन्द्र के चारों ओर घूमते शब्द..

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